जब किसी आरोपी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में मामला पेंडिंग है तो उस दौरान आरोपी सीआरपीसी की धारा-439 के तहत अदालत से जमानत मांग सकता है । यहां ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट केस की स्थिति के आधार पर अपान फैसला देता है। इस धारा के अंतर्गत आरोपी को रेगुलर बेल या फिर अंतरिम जमानत दी जाती है।
How to Get Bail in Hindi – गिरफ्तारी से बचने के लिए कई बार आरोपी कोर्ट के सामने Anticipatory bail की अर्जी दाखिल करता है, कई बार अंतरिम जमानत की मांग करता है या फिर रेग्युलर बेल के लिए अर्जी दाखिल करता है। ऐसे में सवाल उठता है कि जमानत कितने प्रकार के होते हैं, जमानत दिए जाने का provision क्या है और कब और किन परिस्थितियों (circumstances) में जमानत मिलती है।
जमानती अपराध – अपराध दो तरह के होते हैं, जमानती और गैर जमानती। जमानती अपराध में मारपीट, धमकी, लापरवाही से गाड़ी चलाना, लापरवाही से मौत जैसे मामले आते हैं। इस तरह के मामले में थाने से ही जमानत दिए जाने का provision है। आरोपी थाने में बेल बॉन्ड भरता है और फिर उसे जमानत दी जाती है।
गैर जमानती अपराध– गंभीर किस्म के कुछ अपराध जैसे लूट, डकैती, हत्या, हत्या की कोशिश, गैर इरादतन हत्या, रेप, अपहरण, फिरौती के लिए अपहरण आदि गैर जमानती अपराध हैं। इस तरह के मामले में कोर्ट के सामने तमाम facts पेश किए जाते हैं और फिर कोर्ट जमानत का फैसला लेता है।
चार्जशीट न होने पर बेल का प्रावधान- चाहे मामला बेहद गंभीर ही क्यों न हो, लेकिन समय पर अगर पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं करे, तब भी आरोपी को जमानत दी जा सकती है। मसलन ऐसा मामला जिसमें 10 साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान है, उसमें गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना जरूरी है। अगर इस दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है तो आरोपी को सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत जमानत दिए जाने का प्रावधान है। वहीं 10 साल कैद की सजा से कम वाले मामले में 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होती है और नहीं करने पर जमानत का प्रावधान है।
रेग्युलर बेल का प्रावधान– जब किसी आरोपी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में केस पेंडिंग होता है, तो उस दौरान आरोपी सीआरपीसी की धारा-439 के तहत अदालत से जमानत की मांग करता है। ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट केस की मेरिट आदि के आधार पर अर्जी पर फैसला लेता है। इस धारा के तहत आरोपी को अंतरिम जमानत या फिर रेगुलर बेल दी जाती है। इसके लिए आरोपी को मुचलका (Bail Bond) भरना होता है और जमानत के लिए दिए गए निर्देशों का पालन करना होता है।
अग्रिम जमानतAnticipatory bail – अगर आरोपी को अंदेशा हो कि अमुक मामले में वह गिरफ्तार हो सकता है, तो वह गिरफ्तारी से बचने के लिए धारा-438 के तहत अग्रिम जमानत की मांग कर सकता है। कोर्ट जब किसी आरोपी को जमानत देता है, तो वह उसे पर्सनल बॉन्ड के अलावा जमानती पेश करने के लिए कह सकता है। जब भी किसी आरोपी को जमानत दी जाती है तो आरोपी को पर्सनल बॉन्ड भरने के साथ-साथ यह कहा जा सकता है कि वह इतनी रकम का जमानती पेश करे। अगर 10 हजार रुपये की राशि का जमानती पेश करने के लिए कहा जाए तो आरोपी को इतनी राशि की जमानती पेश करना होता है।
जमानती कौन होता है?– जमानती आमतौर पर रिश्तेदार या फिर नजदीकी हो सकते हैं। जमानती जब कोर्ट में पेश होता है तो कोर्ट उससे पूछता है कि वह आरोपी का जमानती क्यों बन रहा है? क्या वह उसका रिश्तेदार है या फिर दोस्त है? कोर्ट जब जमानती से Satisfied हो जाता है, तब वह जमानती बॉन्ड भरता है। जितनी रकम का वह जमानती है उस रकम का बॉन्ड भरना होता है और उस एवज में कोर्ट में दस्तावेज पेश करने होते हैं। इसके बाद कोर्ट जमानती का दस्तखत लेता है और आरोपी को जमानत देता है।